Income Tax: फ्रीलांसर्स और पार्ट-टाइम जॉब से कमाई करने वालों पर टैक्स को लेकर क्या नियम है?

फ्रीलांसर्स और पार्ट-टाइम जॉब वालों की कमाई पर नए टैक्स नियमों के तहत TDS, डिडक्शन और GST कंप्लायंस को स्पष्ट रूप से लागू किया गया है आजकल जॉब के साथ-साथ फ्रीलांसिंग या पार्ट-टाइम काम करना आम हो गया है। घर…

Income Tax: फ्रीलांसर्स और पार्ट-टाइम जॉब से कमाई करने वालों पर टैक्स को लेकर क्या नियम है?
aarti gosavi

Last Updated: November 21, 2025 | 7:38 AM IST

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हाइलाइट्स

  • फ्रीलांसर्स और पार्ट-टाइम जॉब वालों की कमाई पर नए टैक्स नियमों के तहत TDS, डिडक्शन और GST कंप्लायंस को स्पष्ट रूप से लागू किया गया है आजकल जॉब के साथ-साथ फ्रीलांसिंग या पार्ट-टाइम काम करना आम हो गया है। घर…

फ्रीलांसर्स और पार्ट-टाइम जॉब वालों की कमाई पर नए टैक्स नियमों के तहत TDS, डिडक्शन और GST कंप्लायंस को स्पष्ट रूप से लागू किया गया है

आजकल जॉब के साथ-साथ फ्रीलांसिंग या पार्ट-टाइम काम करना आम हो गया है। घर बैठे लेग ग्राफिक डिजाइनिंग, कंटेंट राइटिंग या कंसल्टेंसी जैसे काम कर जमकर पैसे कमा रहे हैं, लेकिन टैक्स के मामले में यह थोड़ा पेचीदा हो जाता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के मुताबिक, ऐसी कमाई ‘प्रॉफिट्स एंड गेन्स ऑफ बिजनेस/प्रोफेशन’ के तहत आती है। मतलब, सैलरी की तरह TDS ऑटोमैटिक नहीं कटता, बल्कि टैक्स का मैनेजमेंट खुद करना पड़ता है।

बजट 2025 के बाद नियम कुछ हद तक आसान हुए हैं। अब न्यू टैक्स रिजीम में स्लैब संरचना 0 से 4 लाख रुपये तक के हिस्से को 0% से शुरू होती है। इसके साथ 87A के रिबेट नियमों के कारण ज्यादातर टैक्सपेयर्स की टैक्स-लायबिलिटी लगभग 12 लाख रुपये तक NIL हो सकती है। (सैलरी वालों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन के साथ यह सीमा कुछ मामलों में और बढ़ जाती है।) अगर आपकी कुल टैक्स-लायबिलिटी रिबेट के बाद शून्य है, तो ITR भरना जरूरी नहीं होता। लेकिन अधिक कमाई पर स्लैब रेट लागू होते हैं।

चलिए, स्टेप-बाय-स्टेप देखते हैं कि फ्रीलांसर्स पर टैक्स कैसे लागू होता है।

फ्रीलांसर्स के लिए इनकम कैलकुलेशन और डिडक्शन

फ्रीलांसर की कमाई को टैक्स लगाने से पहले सबसे जरूरी है सही कैलकुलेशन। चूंकि यह बिजनेस/प्रोफेशन हेड में आता है, इसलिए आप अपनी कमाई में से खर्चे घटा सकते हैं। इसमें लैपटॉप, इंटरनेट बिल, सॉफ्टवेयर सब्सक्रिप्शन, क्लाइंट मीटिंग का ट्रैवल जैसे खर्चे शामिल हो सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि खर्च तभी मान्य होंगे जब उनके रिकॉर्ड हों।

एक आसान विकल्प है प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन स्कीम (Section 44ADA)।

  • अगर आपकी सालाना ग्रॉस रिसीट्स 75 लाख रुपये तक हैं, और आपकी 95% या उससे अधिक receipts बैंकिंग/डिजिटल मोड में हैं, तो आप इस स्कीम के लिए योग्य हो सकते हैं।
  • यहां सिर्फ 50% रिसीट्स को प्रॉफिट माना जाता है और उसी पर टैक्स लगता है। उदाहरण के लिए 10 लाख कमाए तो 5 लाख ‘अंदाजे से मुनाफा’ माना जाएगा।

यह छोटे फ्रीलांसर्स के लिए बहुत सुविधाजनक है क्योंकि पूरी अकाउंटिंग की जरूरत नहीं होती। हालांकि, न्यू टैक्स रिजीम में डिडक्शन सीमित होते हैं। स्टैंडर्ड डिडक्शन 75,000 रुपये (बजट 2025) ही रहेगा। इसलिए पहले ओल्ड और न्यू रिजीम की तुलना कर लेना बेहतर है।

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TDS और अडवांस टैक्स कैसे संभालें

फ्रीलांसर्स के लिए TDS का नियम थोड़ा अलग है।

  • अगर आपका क्लाइंट इंडियन है, तो वह सामान्यतः Section 194J के तहत 10% TDS काटता है, बशर्ते कि पूरे साल में उसका कुल भुगतान 50,000 रुपये की अपडेटेड थ्रेशोल्ड (Budget 2025) को पार करे।
  • यानी 1 लाख रुपये का बिल देने पर 90,000 रुपये मिलेंगे, और 10,000 रुपये टैक्स के रूप में जमा माना जाएगा, जिसकी क्रेडिट ITR में मिलती है।

अगर क्लाइंट विदेशी है, तो TDS नहीं कटता, लेकिन आपको अपना टैक्स खुद जमा करना होता है।
अगर सालाना टैक्स लायबिलिटी 10,000 रुपये से अधिक होती है, तो अडवांस टैक्स देना जरूरी है

  • जून तक 15%
  • सितंबर तक 45%
  • दिसंबर तक 75%
  • मार्च तक 100%

देरी होने पर ब्याज लगता है।

अगर आप किसी फ्रीलांसर को हायर करते हैं, तो Section 194C लागू होगा।

  • एक बार का भुगतान 30,000 रुपये से अधिक या सालाना कुल भुगतान 1,00,000 रुपये से ऊपर होने पर TDS काटना जरूरी है।

गलती से बचने के लिए Form 26AS और AIS जरूर चेक करें।

ITR फाइलिंग और GST से जुड़े नियम

फ्रीलांसर्स को ITR चुनते समय सावधानी रखनी होती है:

  • प्रिजम्प्टिव स्कीम (44ADA) में आते हैं तो ITR-4 भरना होता है।
  • अगर आपकी आय में सैलरी, कैपिटल गेन, किराया आदि भी शामिल हैं, तो ITR-3 सही रहेगा।

गलत फॉर्म से रिटर्न रिजेक्ट हो सकता है, इसलिए ऐसे सॉफ्टवेयर या पोर्टल का उपयोग करें जो ऑटोमेटिक गाइड करें। GST को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

  • सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए रजिस्ट्रेशन लिमिट 20 लाख रुपये (स्पेशल स्टेटस में 10 लाख रुपये) है।
  • एक बार रजिस्ट्रेशन होने के बाद आपको CGST/SGST या IGST चार्ज करना होगा। आपकी सर्विस कहां से दी जा रही है, यह इस पर निर्भर करता है।

ब्लॉगिंग, डिजाइनिंग, डिजिटल सर्विस, सब GST के दायरे में आते हैं। बजट 2025 में इस पर बड़ा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन कंप्लायंस सख्त जरूर हुआ है। पार्ट-टाइम कमाने वालों में कई लोग इसे हॉबी-इनकम समझकर छोड़ देते हैं, लेकिन यदि यह रेगुलर इनकम है, तो GST applicability जांचना जरूरी हो जाता है।